महाराष्ट्र में इन दिनों मराठा कोटा को लेकर सियासत तेज है। इस बीच, आज सरकार ने इस मुद्दे पर चर्चा के लिए मुंबई में सर्वदलीय बैठक बुलाई है। इस बैठक से पहले सीएम एकनाथ शिंदे ने बड़ा बयान दिया। उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र सरकार मराठा समुदाय को कोटा देना चाहती है। उन्होंने यह भी कहा कि ये कोटा फुलप्रूफ होगा और कानूनी जांच में खरा उतरेगा। हालांकि, सरकार इसे लेकर जल्दबाजी में कोई फैसला नहीं लेगी। उन्होंने कहा कि सरकार किसी को धोखा नहीं देना चाहती है।
उन्होंने कहा कि सरकार को यह बताना है कि मराठा समुदाय सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ा है। साथ ही यह आम सहमति भी बनानी है कि इससे अन्य समुदायों का कोटा प्रभावित नहीं होगा। इस दौरान सीएम से सर्वदलीय बैठक के बारे में भी सवाल किए गए। इन सवालों के बारे में पूछे जाने के बारे में सीएम शिंदे ने कहा कि मराठा आरक्षण की मांग एक सामाजिक मुद्दा है, न कि राजनीतिक। मुझे उम्मीद है कि विपक्षी दल कुछ सुझाव देंगे और इस मुद्दे का राजनीतिकरण करने से बचेंगे। उन्होंने यह भी बताया कि राज्य सरकार अन्य पिछड़े समुदायों के समान मराठा समुदाय के छात्रों को समानांतर रूप से कई सुविधाएं और वित्तीय सहायता दे रही है। गौरतलब है कि आज शाम मुंबई में सर्वदलीय बैठक का आयोजन होना है।
वहीं, उपमुख्यमंत्री देवेन्द्र फड़नवीस ने कहा कि सरकार बैठक में मराठों और अन्य समुदायों द्वारा उठाए गए मुद्दों पर आगे बढ़ने के लिए व्यापक सहमति बनाने का प्रयास करेगी। उन्होंने कहा कि बैठक के दौरान सरकार कोटा मुद्दे का राजनीतिकरण किए बिना विभिन्न समुदायों की मांगों का समाधान करेगी। साथ ही राज्य के हितों के लिए उपयुक्त निर्णय पर पहुंचने का प्रयास करेगी।
डिप्टी सीएम ने कहा कि मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने आज सर्वदलीय बैठक बुलाई है। अस बैठक का एजेंडा मराठा कोटा के मुद्दे पर व्यापक सहमति बनाना है। कई संगठनों ने भी आरक्षण के संबंध में अपनी मांग उठाई है। इस दौरान डिप्टी सीएम से मनोज जरांगे के बारे में भी सवाल किया गया। बता दें कि मनोज जरांगे बीते 14 दिनों से भूख हड़ताल पर बैठे हैं। साथ ही उन्होंने पानी पीना भी बंद कर दिया है। मनोज के सवाल पर फड़नवीस ने कहा कि सरकार को इस बारे में एक निर्णय लेने की जरूरत है। यह निर्णय कानूनी परीक्षण के आधार पर होगा। राज्य सरकार ऐसा कोई फैसला नहीं लेगी जिससे दो समुदाय (ओबीसी और मराठा) आमने-सामने आ जाएं।
मराठा आरक्षण कार्यकर्ता मनोज जरांगे समुदाय को कुनबी दर्जा देने की मांग को लेकर करीब दो सप्ताह से भूख हड़ताल पर हैं। मराठा समुदाय के लोगों को कुनबी दर्जा मिलने के बाद वे ओबीसी आरक्षण का लाभ उठा सकेंगे। हालांकि, इस मुद्दे पर महाराष्ट्र सरकार और जरांगे के बीच कई दौर की बातचीत बेनतीजा रही है।
क्या है मराठा आरक्षण का मुद्दा
महाराष्ट्र में मराठा समुदाय के लिए सरकारी नौकरियों और शिक्षा में आरक्षण की मांग लंबे समय से हो रही है। साल 1997 में मराठा संघ और मराठा सेवा संघ ने सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण के लिए पहली बार बड़ा आंदोलन किया। आंदोलनकारियों का कहना है कि मराठा उच्च जाति के नहीं बल्कि मूल रूप से कुनबी यानी कृषि समुदाय से जुड़े थे।
मौजूदा स्थिति की बात करें तो मराठा समुदाय महाराष्ट्र की आबादी का लगभग 31 प्रतिशत है। यह एक प्रमुख जाति समूह है लेकिन फिर भी समरूप यानी एक समान नहीं है। इसमें पूर्व सामंती अभिजात वर्ग और शासकों के साथ-साथ सबसे ज्यादा वंचित किसान शामिल हैं। राज्य में अक्सर कृषि संकट, नौकरियों की कमी और सरकारों के अधूरे वादों का हवाला देते हुए समाज ने आंदोलन किये हैं।
2018 में महाराष्ट्र विधानमंडल से मराठा समुदाय के लिए शिक्षा और सरकारी नौकरियों में 16% आरक्षण का प्रस्ताव वाला एक विधेयक पारित किया गया। विधेयक में मराठा समुदाय को सरकार ने सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ा वर्ग घोषित किया। विधानमंडल में पारित होने के बाद मराठा आरक्षण का मामला अदालती हो गया। जून 2019 में बम्बई उच्च न्यायालय ने मराठा आरक्षण की संवैधानिकता को बरकरार रखा, लेकिन सरकार से इसे राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग की सिफारिश के अनुसार 16% से घटाकर 12 से 13% करने को कहा।
इस आरक्षण को बड़ा झटका तब लगा जब मई 2021 को जब सुप्रीम कोर्ट ने मराठा आरक्षण को असंवैधानिक ठहराया और कानून को रद्द कर दिया। अदालत ने माना कि मराठा आरक्षण 50 फीसदी सीलिंग का उल्लंघन कर दिया गया था।