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Joshimath Sinking:जोशीमठ के सबक और भविष्य की दिशाएं – Lessons And Future Directions From Joshimath, Article By Pushkar Singh Dhami

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जोशीमठ के बारे में विभिन्न संचार माध्यमों से भी बड़ी संख्या में लोगों की प्रतिक्रियाएं और टिप्पणियां मिल रही हैं, जो स्वाभाविक तो हैं ही, उसके साथ-साथ विश्व भर में हिमालय से प्रेम करने करने वाले जनमानस की संवेदनशीलता की भी द्योतक हैं। इन प्रतिक्रियाओं और टिप्पणियों का मैं सम्मान करता हूं और हमारे राज्य और हिमालय के प्रति समाज के हर वर्ग की सहृदयता और उनकी भावनाओं के लिए आभार भी व्यक्त करता हूं।


इसी सिलसिले में मैं अपने अनुभवों, पर्वतीय जीवन की अपनी समझ, समाज के सभी वर्गों से वार्तालाप एवं देश की अग्रणी वैज्ञानिक संस्थाओं के शीर्ष वैज्ञानिकों, विशेषज्ञों, नीति-नियंताओं तथा सामाजिक कार्यकर्ताओं के साथ गहन विचार-विमर्श के आधार पर अपने विचार साझा कर रहा हूं। हमारा जोशीमठ चमोली जिले में बसा हुआ एक रमणीक स्थल है जो पौराणिक, भौगोलिक, सामाजिक एवं सामरिक दृष्टि से उत्तराखंड ही नहीं, अपितु पूरे देश के लिए अति संवेदनशील और महत्वपूर्ण है। समुद्रतल से लगभग 1,875 मीटर की ऊंचाई पर बसा यह स्थान प्राचीनकाल से अध्यात्म और संस्कृति का केंद्र रहा है। यह हिमालय क्षेत्र की आध्यात्मिक, ऐतिहासिक ही नहीं, बल्कि पर्यटक नगरी भी है, जिसे सुरक्षित रखना तथा संवारना सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता है। यह स्थल जहां विश्व    धरोहर ‘फूलों की घाटी’ तथा सलूड़ डुंग्रा के ‘रम्माण विधा’ को जोड़ता है, वहीं विश्व प्रसिद्ध ‘नंदादेवी बायोस्फीयर’ का भी आधार बनाता है।

यह एक वैज्ञानिक तथ्य है कि हिमालय पर्वत शृंखलाएं विश्व की कमोबेश नवोदित पर्वत शृंखलाएं हैं व भौगोलिक रूप से संवेदनशील पर्वत समूह हैं। समूचा हिमालयी क्षेत्र लंबे समय से निरंतर होने वाली भूगर्भीय हलचलों एवं भौगोलिक विक्षोभों के केंद्र में रहा है। हिमालयी क्षेत्र में हम लोगों के जीवन में विभिन्न आपदाओं से चोली-दामन का साथ रहा है और इस परिवेश में रचा-बसा पर्वतीय जीवन हमें आपदाओं का सामना करते हुए शांतिपूर्ण जीवन यापन की शक्ति भी देता है। यह भी ध्रुव सत्य है कि दुर्गम पर्वतीय क्षेत्रों के भूभागों, ढलानों में बसे हुए गांवों, कस्बों, नगरों आदि की धारणीय क्षमता सीमित होती है। समय के साथ उनके फैलाव और बढ़ाव के चलते अगर हम उनके व्यवस्थापन में धारणीय क्षमता से संबंधित तथ्यों की जब-जब अनदेखी कर बैठते हैं, तब-तब हमें प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है। मेरा यह मत और दृढ़ हुआ है कि हमारे सभी कस्बों, नगरों की धारणीय क्षमता का समग्र वैज्ञानिक आकलन होना आवश्यक है और हम उसके लिए त्वरित कदम उठा रहे हैं।

इस बीच, अपने जोशीमठ प्रवास के दौरान स्थानीय लोगों के साथ रहते हुए इस घटना से प्रभावित लोगों की भावनाओं, अपेक्षाओं और उनकी आशंकाओं को मैंने बहुत करीब से समझा है और महसूस किया है। मैं समझ सकता हूं कि दशकों से जिस स्थान, भूमि से कोई व्यक्ति, बच्चा, मां, बहन जुड़ी हो, वहां इस प्रकार की स्थिति कितनी कष्टप्रद होती है और मानसिक वेदना देती है। इस क्षेत्र के भ्रमण के पश्चात, मैं यह पूरे विश्वास के साथ कह सकता हूं कि जोशीमठ में हर व्यक्ति के सभी हित सुरक्षित रहेंगे। एक बात और है कि जोशीमठ की यह घटना हमें पारिस्थितिकी की सुरक्षा के प्रति सवेदनशील चिंतन की प्रेरणा तो देती ही है, साथ ही आर्थिकी और पारिस्थितिकी के बीच के समन्वयन के बारे में भी चेताती है। यह हमारे समक्ष आने वाले समय में जलवायु परिवर्तन तथा हिमालयी क्षेत्र के विकास के मॉडल के बारे में सुस्पष्टता से कार्य करने के लिए प्रेरित करती है। मैं यह भी कहना चाहता हूं कि उत्तराखंड हमारे अतिथियों और अभ्यागतों के लिए सदैव सुरक्षित रहा है और रहेगा, इस तथ्य के प्रति किसी प्रकार का कोई संशय नहीं रहना चाहिए।

इस बीच, मैंने राज्य के एवं राज्य में स्थित केंद्रीय शीर्ष वैज्ञानिक संस्थानों के वैज्ञानिकों एवं विशेषज्ञों के साथ लगातार इस विषय पर गंभीर विचार-विमर्श किया है। हम सब मिलजुल कर हर आपदा का डटकर मुकाबला करने के लिए तैयार हैं। जोशीमठ से हमें अपने भविष्य के लिए सीख भी मिलती है। इस हिमालयी क्षेत्र में ‘विकास के व्यावहारिक ठोस मॉडल’ की भी नितांत आवश्यकता है लेकिन ‘वह मॉडल कैसा हो’, यह वैज्ञानिक विमर्श के आधार पर ही तय किया जाना श्रेयस्कर है। ‘विकास की प्रक्रिया क्या हो’, जमीनी स्तर पर उस ‘प्रक्रिया का सही कार्यान्वयन कैसे हो’ इन विषयों पर नीति नियंताओं, वैज्ञानिकों, विषय विशेषज्ञों, स्थानीय व्यक्तियों, संबंधित विभागों के साथ समन्वयन से गंभीर चिंतन की आवश्यकता है और मैं व्यक्तिगत रूप से यह संवाद स्थापित कर रहा हूं। 

हमारा लक्ष्य है कि अगले दो वर्षों में हम सशक्त उत्तराखंड/25 की अवधारणा को साकार करते हुए अपने राज्य को विकास के मापदंडों के आधार पर देश में अग्रणी राज्यों की श्रेणी में स्थापित करें। इस दिशा में हम मनसा-वाचा-कर्मणा जुटे हैं। ऐसी घटनाएं समय-समय पर हमारे इन प्रयासों की गति को कम जरूर कर कर देती हैं, लेकिन जब पूरी देश-दुनिया और सवा करोड़ जागरूक उत्तराखंडवासी दृढ़ता के साथ हर परिस्थिति का डटकर मुकाबला करने का सम्बल देते हैं, तो हमारी ऊर्जा, उत्साह और मनोबल दुगना हो जाता है। माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तथा गृहमंत्री अमित शाह ने प्रदेश को हर तरह के सहयोग के लिए आश्वस्त किया है। भारत सरकार के निरंतर सहयोग एवं मार्गदर्शन में हम उत्तराखंड को एक सुरक्षित, सशक्त एवं समृद्ध राज्य बनाने के लिए दृढ़संकल्पित होकर प्रयासरत हैं। आप सभी की सद्भावना से हमारा यह प्रयास निश्चित ही फलीभूत होगा।


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