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India that is Bharat When BR Ambedkar and HV Kamat clashed in Constituent Assembly know how name come into existence – India Hindi News – इंडिया यानी भारत: जब संविधान सभा में भिड़ गए थे अंबेडकर और कामत, जानें

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INDIA vs BHARAT: बात 18 सितंबर 1949 की है। संविधान सभा की बैठक हो रही थी। डॉ. राजेंद्र प्रसाद संविधान सभा के अध्यक्ष थे और डॉ. भीमराव अंबेडकर संविधान की प्रारूप समिति (ड्राफ्ट कमेटी) के अध्यक्ष थे। संविधान के अनुच्छेद-1 के उपबंध-2 से जुड़ा 130वां संशोधन संविधान सभा के सदस्य हरि विष्णु कामत (एचवी कामत) पेश कर रहे थे। चूंकि संविधान का पहला अनुच्छेद देश के नामकरण से जुड़ा है, जिसमें लिखा गया है कि देश का नाम INDIA यानी भारत जो राज्यों का संघ होगा, इसलिए स्वभाविक है कि उस दिन देश के नाम पर ही संशोधन प्रस्ताव पेश किया गया था। 

एचवी कामत ने की थी लंबी बहस

संविधान सभा के सदस्य कामत ने तब अपनी बात रखते हुए सदन में कहा था, “दुनिया के अधिकांश हिस्से में नवजात शिशु के नामकरण या नामकरण संस्कार की प्रथा है। एक गणतंत्र के रूप में भारत का जन्म बहुत जल्द होने वाला है और स्वाभाविक रूप से देश में कई वर्गों- (लगभग सभी वर्गों) के बीच एक आंदोलन चल रहा है कि नए गणतंत्र के इस जन्म के साथ नामकरण समारोह भी होना चाहिए। भारतीय गणतंत्र के इस नवजात शिशु को क्या उचित नाम दिया जाना चाहिए, इस संबंध में कई सुझाव सामने आए हैं। उनमें प्रमुख सुझाव भारत, हिंदुस्तान, हिंद और भारतभूमि या भारतवर्ष हैं।  इस स्तर पर यह वांछनीय होगा और संभवतः लाभदायक भी होगा कि हम इस प्रश्न पर विचार करें कि नए शिशु के जन्म के इस अवसर पर भारतीय गणराज्य के लिए कौन सा नाम सबसे उपयुक्त है।”

शुरू हुई नाम पर बहस

कामत ने आगे कहा था कि कुछ लोग ये भी कह रहे हैं कि नाम की जरूरत क्या है, इस देश को इंडिया तो कहा ही जाता है, लेकिन जो लोग भारत या भारतवर्ष या भारत भूमि नाम रखना चाहते हैं, उनका तर्क है कि ये इस धरती का सबसे पुराना नाम है। कामत की इस बात का पहला जवाब डॉ. अम्बेडकर ने दिया।  इसके बाद देश के नामकरण पर बहस शुरू हो गई।

कामत की बात पर खड़े हो गए थे डॉ. अंबेडकर

कामत की बात पर डॉ. अम्बेडकर सदन में खड़े हो गए थे। उन्होंने तब कहा था, क्या ये सब पता लगाना जरूरी है? मुझे इसका उद्देश्य समझ में नहीं आता। यह किसी अन्य स्थान पर भी दिलचस्प हो सकता है। मेरे मित्र को “भारत” शब्द स्वीकार है। बात सिर्फ इतनी है कि उन्हें एक विकल्प मिल गया है लेकिन मुझे बहुत खेद है, लेकिन सदन के सामने समय बहुत कम है। इसे देखते हुए उन्हें अनुपात का कुछ एहसास होना चाहिए। मुझे अफसोस है कि इस गंभीरता को नहीं समझा जा रहा है।

कई सदस्यों को कामत ने लगाई थी फटकार

इस पर कामत तिलमिला उठे थे। उन्होंने अंबेडकर को पलटकर जवाब दिया था कि सदन चलाने की जिम्मेदारी उनके कंधे पर नहीं है। इसी दौरान जब शंकरराव देव ने बीच में कुछ टिप्पणी की तो कामत उन पर भी भड़क उठे थे। इसी बीच मद्रास से आने वाले एन गोपालस्वामी अयंगर ने भी कुछ कहना चाहा तो कामत ने उन्हें भी लपेटे में ले लिया और पूछ डाला कि आप इतने उतावले क्यों हो रहे हैं। कामत ने के एम मुंशी को भी टोका-टोकी करने पर टोका। कामत ने इतना कहते हुए देश का नाम भारत रखने का प्रस्ताव बढ़ा दिया।  इस पर सदन के अध्यक्ष ने कहा कि यह सिर्फ भाषा में बदलाव का मामला है।

आयरलैंड का भी दिया था उदाहरण

कामत ने अपने भाषण में ये भी कहा कि देश के नाम में इंडिया को जोड़ना एक गलती है, जिसे भारत कर सुधारने की जरूरत है। कामत ने इसे पीछे आयरलैंड का उदाहरण भी दिया था। उन्होंने तब कहा था कि आयरलैंड ने 1937 में कहा था कि देश का नाम आयर है और अंग्रेजी में उसका नाम आयरलैंड है। ठीक इसी तरह हमें भी देश का नाम भारत रखना चाहिए और उसका अंग्रेजी नाम इंडिया करना चाहिए।

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कमलापति ने बीच-बीच का रास्ता सुझाया

कामत के तर्क के बाद सदन में बहस शुरू हो गई, जबकि अंबेडकर चाहते थे कि इस मसले को आधे घंटे में निपटा दिया जाय। बहरहाल इस पर लंबी बहस हुई, जिसमें सेठ गोविंद दास, कमलापति त्रिपाठी, श्रीराम सहाय, हरगोविंद पंत ने भी हिस्सा लिया। सेठ गोविंद दास ने भी भारत के ऐतिहासिक संदर्भ का जिक्र करते हुए देश का नाम भारत रखने पर जोर दिया। बाद में कमलापति त्रिपाठी ने बीच-बीच का रास्ता निकालने की कोशिश की थी। उन्होंने कहा, देश का नाम इंडिया अर्थात भारत रखा गया है लेकिन इसे देश की ऐतिहासिक मर्यादा को देखते हुए भारत अर्थात इंडिया कर दिया जाय।

सदन में हुई थी वोटिंग

इसके बाद भी सदन में दूसरे सदस्यों ने आपत्ति जताई। किसी ने भारतवर्ष को किसी ने हिन्द का प्रस्ताव दिया। दक्षिण और गैर हिन्दीभाषी सदस्यों ने भी भारत पर आपत्ति जताई। इसके बाद सदन ने भारत अर्थात इंडिया प्रस्ताव पर वोटिंग कराई जो गिर गया। इसके अलावा कई और नामों पर भी वोटिंग हुई मगर सभी प्रस्ताव गिर गए। आखिर में “इंडिया अर्थात भारत राज्यों का संघ” नामकरण सदन से पारित हो गया और यही नाम संविधान के अनुच्छेद-1 में वर्णित किया गया।

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